चौराहे के भीड़ में एक सुना डाकघर नज़र आया, वक्त की दौड़ में शायद कहीं खो गया उसका सायादिल जरा बैठ गया देखके उसका हवाल, मन उठे कुछ सवाललोग अब पहले जैसे खत क्यूं नहीं लिखते, डाकघर पहले जैसे अब क्यूं नहीं चहकते?फुरसत में वक्त निकालकर खत लिखना, जाने क्यूं भूल गया है ज़माना ?कभी… Continue reading भूले बिसरे खत…
