घना कोहरा था
ऐसे में तुम आए
काले सफेद से परे
साथ अपने कई रंग लाएं
तुम्हारे ही इर्द गिर्द था वजूद मेरा
आशियां अपना था मुझे दोनों जहां से प्यारा
बिन बताएं एक रोज़ तुम चले गए
संग अपने सारे रंग भी ले गए
फिर पुराने कोहरे कि तरफ कदम मुड़े
तभी अचानक नन्हें से पंख मेरी ओर उड़े
एक तूफ़ान कि ओर मुझे वो ले आएं
ठीक उसी मोड़ पर जहा साथ छोड़ देते हैं साएं
अब बरबाद या आबाद होना मेरे हाथ था
दोनों में बस एक हौसले का फासला था
आबादी का दामन थामा उम्मीद भरे दिल ने
इसी ख्वाहिश से के तुम फिर आओगे मुझसे मिलने…
पर अब की बार जब आओगे
मुझे पहले से अलग पाओगे
तुमसे ना कुछ कहूंगी ना कुछ पूछूंगी
पर कुछ तुम्हारे आंखों में जरूर ढूंढूंगी
अरे नही… मुझसे बिछड़ने का गम नही
कभी मिले थे मुझसे इस बात का सुकून तो होगा कही
क्यूं.. होगा ना?
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