उसके आने की खबर उससे पेहले आ गयी…
जब शाम रोज से थोडा जल्दी आ गयी|
अरसे बाद जब देखा उसे, आँखे जरा नम सी गयी…
हंसी बिखरी ओंठोपर, धडकन जरा थमसी गयी|
उसने कहा “पगली हो? ऐसे रोते नहीं”
अब कैसे समझाऊ उसे, मुस्कुराती आँखों में भी होते सैलाब कई|
तेजी से धडकता हुआ दिल, धुंदलाती नजर…
और तलाश में मैं, ‘क्या हो रहा ऊसपे भी येही असर?’
पर हाय रे, वो तो माहीर निकला जजबात छुपाने में…
ज़िद छोड फिर ढुंढता रहा दिल खुशी उसके पास होने में|
लफ्झ कम थे उसके, पर आँखे उसकी काफी कुछ कह गयी…
मैं बेसबर उसकी हर अनकही बात मोतीयों सी पिरोती गयी|
लम्हा लम्हा गुजरा और उसके जाने का समय करीब आया…
नादान सी मैं चाहती रही, उसे ना सही पर रोंकलु उसका साया|
गले लगाकर मुझे जैसे ही मुडा वो…
एहसास हुआ मुझे किस तरह हैं मुझसे जुडा वो|
दो कदम चल, वो रुका और मुस्कुराया…
दबे पांव फिर वो मेरे पास आया|
निहारते हुए चेहरा मेरा, आँखो वो मेरे गया गुम…
नांक होले से पकडी उसने कहा- “पुरीही फिल्मी हो ना तुम ?
निकलता हूं जब भी जाने मैं, बिन कहे रोक लेती हो तुम|
कैसें बताऊं तुम्हे जिंदगी की इस भागदौड में, मेरे घर लौटने की वजह हो तुम” |
ऎसी खट्टी मिठी मुलाकातों सिलसिला हैं हमारा…
कभी अपनेआप में पुरा, तो कभी पुरा हो कर भी अधुरा ||
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