ख्वाहिशें…

हज़ारो ख्वाहिशें सीने में दबी हैं ऐसी,
नन्हीं तितलियां कही कैद हो जैसी
कुछ ख्वाहिशें मर जाती हैं आज़ाद होने से पहले,
जैसे तितलियों के पर किसीने काट दिए हो उडने से पहले…
कुछ ख्वाहिशें चल पडती हैं पूर्णत्व के राह में,
स्वछंद जग में अपना अस्तित्व बनाने के चाह में
कुछ ख्वाहिशें बीच राहमें तोड देती हैं दम,
तो कुछ आगे बढती हैं भुलाकर अपने साथीयों का गम…
लेकिन उन्हे क्या पता इस जग में अपना अस्तित्व बनाना इतना आसान नही,
जितना पास दिखता है, असल में उतने पास होता आसमान नही
फिर भी…
कुछ ख्वाहिशें जी उठती हैं सबसे लढ झगडकर,
पा लेती हैं वो अपनी मंझिल उमीद का दामन थामकर…
कामयाब तो ये हो जाती हैं लेकिन कभी आपनों को खो देती हैं,
और दुनिया के सामने हसतें हसतें दिल में चुपकेसे रो लेती हैं
शायद ये सोचकर क्या हमने गलती की उडने की तमन्ना रखकर,
नहीं मिलती आज़ादी पर अपनो का साथ तो मिलता वैसेही दबे रेहते अगर…
पर अब देर हो चुकी है नया आस्मा पुकार रहा है इनको,
शायद इनका दर्द अब समझ लेना चाहिए इनके अपनों को…

(from one of my archived diaries -2006… first and only try in Hindi poetry till date!!)

© 05.06.2020 The copyright and other intellectual property rights of this content and material including photographs , graphical images and the layout is owned by the author and soulsanvaad.com

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